यह मनोहर श्याम जोशी जी की एक अच्छी पुस्तक है. व्यंगात्मक शैली मैं लिखी गयी इस पुस्तक के नायक नेता जी का चरित्र तो प्रचंड है :-) एक छुटभैये नेता होते हुए भी उनका रुतबा और उस पर से आत्म विश्वास ... कुछ भी कर गु़जरने का बहुत ही अच्चे तरीके से उभरा हुआ है. कई जगह पर तो उनके कथन इतने अच्छे हैं की हंसते हंसते आप के पेट में बल पड़ जाएँ और कई जगह पर ये कटाक्ष डेमोक्रेसी में दुर्व्यवस्था को बड़े अच्छे से उभारते हैं.एक उदहारण के तौर पर....
"गाँव दिहात में कहितें हैं की जिसकी जीभ चलती हय, उसके नऊ बिगहा खेत में हल चलिता हय.
वियापी हइये वोही जिसके एकही अंग को कष्ट देना पड़ता हय - जीभ को !"
और भी ऐसे कई वाकये हैं जो बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत किये गए हैं.
इस पुस्तक को हलके फुल्के पल में पढ़ना बहुत ही आनंददायक होगा.
एक परेशानी थोडा सा होती है जब अंग्रेजी के शब्दों को जोशी जी ने हिन्दी में लिखा है....वो थोडा क्लिष्ठ हो जाते हैं....और कुछ जगहों पर जिस तरह से उनका संधि विच्छेद कर के लिखा हुआ है...पढ़ने में थोडा असुविधा होती है...वैसे तो उस चीज़ को किस तरह से बोला जाता है....उसीको प्रस्तुत करने की कोशिश अच्छी है.
http://en.wikipedia.org/wiki/Manohar_Shyam_Joshi
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