Sunday, June 12, 2011

Vinash kale viprit budhhi......

अन्ना के सामने कांग्रेस पार्टी और सर्कार बेबस तो दिख रही है लेकिन फिर भी सरकार का रवैया अजीब सा है. बहुत कुछ परोक्छ होते हुए भी और सरकार बेबसी में भी कदा रुख अपनाने की कोशिश कर रही है....साढ़े हुए राजनीतिज्ञ जो की परिस्थितियों को अच्छे से कण्ट्रोल कर सकते थे, शांत रहे हैं और कुक उदंड लोगों ने परिस्थितियों को सम्हालने की कोशिश की है. जिस तरीके से कांग्रेस ने बाबा रामदेव के अनशन को भंग किया, वो तो सरकार के दिवालियेपन की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है और साथ में ये भी स्पष्ट होता है की सरकार में कुछ लोगों ने नहीं बल्कि मामला कुछ और लोगों ने सम्हाला है जिनकी परिपक्वता पर सवाल खड़े होते हैं. मुझे तो प्रतीत होता है की यह सोनिया जैसे लोगों की शाह पर कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने परिस्थितियों को बिगाड़ा है.

अभी तो यही लगता है की सरकार "विनाश काले विपरीत बुध्धि" वाले कहावत को चरितार्थ कर रही है. देश का दुर्भाग्य है की बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे महा पुरुष जिन्होंने कई मौकों पर सिद्ध किया है की वो लोग देश हित में समर्पित है, प्रश्न चिन्ह लगाये जा रहे हैं.