Thursday, October 30, 2014

rim jhim gire sawan....

रिम  झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाये मन
भींगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन !!

लता मंगेशकर की आवाज़ में ये ख़ूबसूरत गीत आज की दिन भर की थकन पूरी नहीं तो थोड़ी थकन तो जरूर दूर करता है. सोच रहा हूँ की आज कल के गाने और पुराने गानों  में कितना  फर्क है. और फिर ये भी  है की आज की जनरेशन कितना कुछ मिस करती होगी. कहीं  पढ़ा था की अगर क्लासिकल मुस्िक सुना जाये तो स्ट्रेस लेवल वैसे ही कंट्रोल रहता है और आज कल के गाने तो क्लासिकल मुस्िक से कोसों दूर रहते हैं.

आने वाली जनरेशन या तो  इतनी कूल होगी की उनको जरूरत ही नहीं होगी किसी भी स्ट्रेस बस्टर की। …उमॆद करता हूँ ऐसा ही हो.  वैसे तो देख रहा हूँ की कुछ नै पीढ़ी के लोग  सुन रहे हैन…और एन्जॉय भी कर रहे  हैं.

----

मुझे फिर वोही याद आने लगे हैं, जिन्हें भूलने में ज़माने हैं !

सुना है हमें वो भूलने लगे हैं, तो क्या क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं !!

कुछ  और लाइनें याद आती हैं जो गुजरे हुए ज़माने में ले जाती हैं. हरिहरन की ये ग़ज़ल पुराने ज़माने की याद हैं।  तब, जब की कैसेटस चला करते  थे और वॉकमेन हाथों में शोभा बढ़ता था.





































































Monday, October 27, 2014

Aak...cheen....Thand aa rahi hai

ठंड है की दबे पावं आना चाहती है किन्तु लोग आने नहीं देते.  ऑफिस में बैठे मैं सोच रहा था की ठंड का उदघोस लोग किस तरह से छींक  छींक कर कर दे रहेँ हैं. ठंड का मुंह छुपाना मुश्किल हो गया है और इसलिए ठण्ड थोड़ा लुक-छिप्पी के मूड में आ जाती है.

अभी दिन में थोड़ी ठण्ड बढ़ थी  तभी लोग शुरू हो गये....

आक्छ्ह्हॆऎ…।
अठान्नन्न

……

ठण्ड शर्मा गयी और  भाग ली !

उसने देखा  ऐसे ही परेशान हैं....थोड़ा छोड़  दें,बख्श दें इनको इनके हाल पर !
अच्छा लगा की ठण्ड इतना कन्सिडराते हो रही है, काश ऐसा ही होता ! लेकिंग फिर समझ  की कश्मीर की  बारिश और आंध्र के हुद हुद को  थी थोड़ा कन्सिडराते होने में.  डेवलपमेंट तो इतना वहां  भी नहीं था की इतनी तबाही  पड़े. कश्मीर के बदल क्यों रो पड़े के जहाँ देखो वहीं पानी, हुद हुद तो खैर समुसदृक्  था सो उसकी अपनी मर्ज़ि.

कुछ भी हो, ठण्ड आना मांगती है,  हर साल तो आती है तो अभी थोड़ा वेट करके बेशर्मी दिख्सती आ ही जाएगी :-)

Wednesday, October 1, 2014

Faiz by Abida.......

Continuing the contribution on the blog with Faiz's creations.
A great ghazal from the album - "Faiz by Abida" 
शाम ए फ़िराक़ अब न पूछ, आइ और आके टल गई ! Shaam-e-firaaq ab na puuchh aayii aur aake tal gayii
दिल था के फिर बहल गया, जां थी के फिर संभल गयी !! Dil thaa K phir bahal gayaa, jaaN thii K phir sambhal gaii
बज़्म इ ख्याल में तेरे हुस्न की शम्मा जल गयी ! Bazm-E-khayaal meN tere husn kii sham’aa jal gayii
दर्द का चाँद बुझ गया, हिज्र की रत ढल गयी !! Dard kaa chaaNd bujh gayaa, hijr kii raat dhal gayii

जब तुझे याद कर लिया,सुबह महक महक उठि ! Jab tujhe yaad kar liyaa, subhh mahak mahak uthii

जब तेरा ग़म जग लिया, रात मचल मचल गयी !! Jab teraa Gham jagaa liyaa, raat machal machal gayii
दिल से तो हर मुआमला, करके चले थे साफ हम ! Dil se to har mu’aamlaa karake chale the saaf ham
कहने में उनके सामने, बात बदल बदल गयी !! Kahane meN unke saamane baat badal badal gayii

आखिर इ शब के हमसफ़र, "फैज़" न जाने क्या हुए ! Aakhir-E-shab ke hamasafar ‘Faiz’ na jaane kyaa hue
रह गयी किस जगह सब्बा, सुबह किधर निकल गयी !! Rah gayii kis jagah sabaa, subha kidhar nikal gayii
~ *~*~*~ 
After quite a long time, I took shelter in "Faiz by Abida"...A magical musical creation which I was introduced by Delhi Haat, INA at one visit to the place....The loud sound @the Avadh stall - " गुल हुई जाती है। …" I was completely lost in the music. I identified that it's none other than Abida but I was not sure of the Album, after I asked about it and next day bought the CD. Few months later, I also did download through torrents which was a fashion then....:-)

I had heard of Faiz but lyrics for this album were awesome..

When I started listening again, I found other lyrics also of another ghazal which doesn't belong to the album but it's too good.

राज ए उल्फत छुप्पा के देख लिया ! Raz E ulfat chhupa ke dekh liya
दिल बहुत कुछ जला के देख लिया !! Dil bahut kuchh jala ke dekh liya
और क्या देखने को बाकी है ! Aur kya dekhne ko baaqi hai
आप से दिल लगा के देख लिया !! Aap se dil lagaa ke dekh liya
वो मेरे हो के भी मेरे ना हुये ! Wo mere ho ke bhi mere na hue
उनको अपना बना के देख लिया !! Unko apnaa bana ke dekh liya
आज उनकी नज़र में कुछ हमने ! Aj unki nazar meN kuchh hamne
सबकी नज़रें बचा के देख लिया !! Sabki nazreN bachaa ke dekh liya
आस उस दर से टूटी ही नहीं ! Aas us dar se TuTti hi nahiN
जा के देखा, ना जा के देख लिया !! Ja k dekha, na ja ke dekh liya
"फैज़" तकमील ए ग़म भी हो न सकी ! ‘Faiz’ takmil E Gham bhi ho na saki
इश्क़ को आज़मा के देख लिया !! Ishq ko aazmaa ke dekh liya
I'll be more frequent, I wish !