Tuesday, August 21, 2012

rimjhim ke tarane le ke aayee barsat...

....रिमझिम के तराने ले के आयी बरसात ....

यही गीत बज रहा है और मैं ख्यालों में खोता जा रहा हूँ । 

एक दिवस जब बरसात आयी है काफी दिनों के बाद दिल्ली क्षेत्र में, हर कोई तरस ही रहा था इस बरसात के लिए, पर इसकी भी अपनी समस्या है । बड़े सारे जगहों  पर गाड़ियाँ ठप्प हो गयी और परिणामस्वरूप जाम लग गए थे । सुबह-2 समाचार चंनेल्स ने भी चिल्लाना शुरू कर दिया है । "Breaking News : पुरानी दिल्ली के सारे रस्ते बंद, रिंग रोड पर 3 kms का जाम ....."

चित्राक्षी उठ गयी हैं और अपनी दिव्य भाषा जो की तेते और पापापा ....जैसी शब्दावली से बनी है, बतियाने की कोशिश कर रही हैं । ऑफिस के लिए निकालने से पहले हम चित्राक्षी को प्यार करते हैं और फिर चल देता हैं। बरसात हो रही है और गाड़ी की चाल भी उसी के हिसाब से धीरे है । 

coal gate मुद्दा अभी भी गर्म बना हुआ है और जिस तरह से सरकार पुरे मुद्दे को ठन्डे बसते में डालने की कोशिश में लग गयी है, इससे जाहिर होता है कि भेण तंत्र देश के नेताओं को कितने सुगम अवसर प्रदान करता है लाखों करोरों उड़ने के लिए, ऐसे ही दिमाग में 2G  और Commonwealth घोटाले की भी प्रसारित समाचार याद आ रहे हैं। लेकिंन क्या हुआ, कुछ भी तो नहीं , कलमांदी साहब तो ओलिम्पिक  में हिंदुस्तान की तरफ से लन्दन भी घूम आये। मुझे लगता है की कोई भी पर्तिसिपंत अगर इनको वहां लन्दन में अपने इवेंट के दिन देख लेता होगा तो सोचता होगा की छोड़ो यार, क्यूँ मेहनत करना, ऐसे तो नेता हैं हमारे यहाँ जो इतने बदनामी के बाद भी शर्म नहीं करते। ना लेंगे मेडल तो क्या, ओलिम्पिक में आ तो गए ही।

बहरहाल, उन सबको बधाइयाँ है तो मेदल्स लेकर आये और उनको भी जिन्होंने अपना पूरा प्रयास किया । नहीं दे पा रहा हूँ बधाइयाँ तो उनको जो होकी की पूरी साख मिटा आये लन्दन में ।

खयालो से बहार आके सोचता हूँ की कल फिर ऑफिस जाना है ,
अभी भी वोही गीत चल रहा है।...


.....रिमझिम के तराने ले के आयी बरसात ....

शुभ रात्रि !!!

Tuesday, August 23, 2011

Anna and idiots in my INDIA......

आज अरुंधती रॉय जैसे कुछ लोगों की राय देखकर कुछ लाइनें याद आ रहीं हैं दिनकर जी की -

क्षुद्र पात्र हो, मग्न कूप से जितना जल लेता है
उससे अधिक वारी सागर भी उसे नहीं देता है !

ये लाइनें कितनी सजीवता से इस तरह की स्थिति को स्पष्ट कर देती हैं. इस तरह के हर किसी की सोच के बारे में सोच कर तरस से ज्यादा कुछ नहीं आता. एक महापुरुष जिसने पिछले २० वर्षों में  इस देश और प्रदेश के लिए इतना कुछ किया है. Right of Information से लेकर कुछ और अहम् मुद्दों पर अन्ना ने जितना योगदान किया है, उसके बारे में लोगों को जानने की जरूरत है. कैसे बनी होगी कपिल सिब्बल की ये मानसिकता जब उन्होंने कहा -

"अन्ना को टीवी पर अपने आप को दिखने के लिए  ये आन्दोलन का नाटक है"
अब ऐसे मामले में कपिल सिब्बल की समझदारी कुछ और बड़े मतलबों से दबी रह गयी तो क्या ये अरुंधती रॉय जैसों को नहीं समझ में आ रहा.

ये एक ही मामला नहीं था, इसके बाद एक और कांग्रेस के नेता ने बहुत ही नीचता से कुछ बयान दिए -

"भ्रस्टाचार की लड़ाई की बात करने वाले अन्ना....तुम तो खुद ही सर से पांव तक भ्रस्टाचार में लिप्त हो"

इस नेता, जिसका नाम मनीष तिवारी है ने ये भी कहा कि अन्ना सेना छोड़ के भागे थे...कितना शर्मनाक है इस नेता का व्यवहार और यह जल्दी ही सिद्ध हो गया जब एक RTI के जवाब में ये सारे आरोप से सेना ने अन्ना को बरी कर दिया. इस दुष्ट प्रकृति नेता ने कभी भी क्षमा नहीं मांगी जो कि सिद्ध करता है कि यह बहुत ही दोयम दर्जे के इन्सान(?) हैं.
कितना दुखद था ये, कैसी होगी वो मां जिसने ऐसे अभागे को जन्म दिया. मन लें कि संस्कार और बड़े छोटे के अंतर को आज कल के लोग भूल गए हों लेकिन फिर भी ऐसे बयानबाजी पर तो इस बेशर्म इन्सान(?) को धिक्कार है.

उसके बाद भी बहुत सारे कांग्रेस के नेताओं ने बेशर्मी दिखाने कि कोशिश कि मसलन दिग्विजय सिंह, अभिषेक मनु सिंघवी और बेशर्म कपिल सिब्बल |

असल में बात जो समझ में आती है वो ये है कि जो कुछ पढ़े लिखे और स्वार्थ में अंधे लोग हैं इनको वो अन्ना जो कि ८ दिन से अनशन पर बैठे  हैं और पहले भी देश और प्रदेश कि भलाई के लिए अनशन कर चुके हैं, वो स्वार्थ परक दिख सकते हैं. इनकी समझदानी इतनी छोटी हो सकती है, ये आश्चर्यजनक किन्तु सत्य है और इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता. कोई भी अच्छे से पढ़ा इन्सान इस बात को क्यूँ नहीं समझ सकता कि अन्ना दूसरे गाँधी या कुछ बड़े हैं जो इतना बड़ा संघर्ष कर रहे हैं. अभी भी अगर कुछ समझ्दानियाँ छोटी हैं, भगवन ! इनकी समझदानी को बढ़ाये और अगर ये भगवन को नहीं मानते (जैसा कि प्रायः देखा जाता है) तो ये इस ज़िन्दगी में कुछ अच्छा सोच नहीं सकते.  भगवन इनके अगले जन्म में इन्हें थोड़ी बड़ी समझदानी दें !

अन्ना संघर्ष करो !
हम तुम्हारे साथ हैं !!

अब तो ये स्पष्ट है !
कांग्रेस आई भ्रष्ट है !!

Sunday, June 12, 2011

Vinash kale viprit budhhi......

अन्ना के सामने कांग्रेस पार्टी और सर्कार बेबस तो दिख रही है लेकिन फिर भी सरकार का रवैया अजीब सा है. बहुत कुछ परोक्छ होते हुए भी और सरकार बेबसी में भी कदा रुख अपनाने की कोशिश कर रही है....साढ़े हुए राजनीतिज्ञ जो की परिस्थितियों को अच्छे से कण्ट्रोल कर सकते थे, शांत रहे हैं और कुक उदंड लोगों ने परिस्थितियों को सम्हालने की कोशिश की है. जिस तरीके से कांग्रेस ने बाबा रामदेव के अनशन को भंग किया, वो तो सरकार के दिवालियेपन की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करता है और साथ में ये भी स्पष्ट होता है की सरकार में कुछ लोगों ने नहीं बल्कि मामला कुछ और लोगों ने सम्हाला है जिनकी परिपक्वता पर सवाल खड़े होते हैं. मुझे तो प्रतीत होता है की यह सोनिया जैसे लोगों की शाह पर कपिल सिब्बल और दिग्विजय सिंह जैसे लोगों ने परिस्थितियों को बिगाड़ा है.

अभी तो यही लगता है की सरकार "विनाश काले विपरीत बुध्धि" वाले कहावत को चरितार्थ कर रही है. देश का दुर्भाग्य है की बाबा रामदेव और अन्ना हजारे जैसे महा पुरुष जिन्होंने कई मौकों पर सिद्ध किया है की वो लोग देश हित में समर्पित है, प्रश्न चिन्ह लगाये जा रहे हैं.

Friday, July 16, 2010

Eye of the needle

A fabulous read after quite some time by Ken Follet....It's about a german spy Die Nadel who if existed, was very near to let Germany win the World War II. He did a great job...collecting proofs of the biggest English bluff army/airforce base in a particular region of Britain, he made all his effort to let it be handed to Feuhror. He almost made it...but lost the last battle and loved a british women who is good to her till the moment, she didn't know if he is a German.

Overall a great novel to read....


More ....

http://en.wikipedia.org/wiki/Eye_of_the_Needle

Thursday, July 1, 2010

Lapataganj.....

अभी सब टीवी पर लापतागंज सीरियल, जो १०:०० बजे शाम को शुरू होता है...एक बहुत ही ताज़गी भरा प्रोग्राम है. समाज कि मध्य वर्ग के जीवन में खुशियाँ छोटी छोटी चीज़ों से किस तरह से पाई जा सकती हैं...इसका एक बहुत ही अच्चा चित्रण इस सीरियल में करा गया है.
बिजी पांडेय और गुड्डू कि जोड़ी तो बहुत ही अच्छा और मनोरंजक उदाहरण है मध्य वर्गीय समाज के युवकों को चित्रित करता हुआ जो शायद थोड़े व्यस्त हैं अपनी सपनों कि दुनिया में. उनके सपने बहुत बड़े नहीं हैं, बस कुछ चंद हज़ार रुपये और "सुरीली" कि उनके जीवन में उपस्थिति ही उनको भूँकने से लेकर एक अच्छा इन्सान बनाने को प्रेरित करती है.
शेष .....

Saturday, January 30, 2010

सुन्दरकाण्ड का पाठ वैसे तो बहुत ही सुखदाई होता है परन्तु अगर यह एक अच्छे लय में सुनाने को मिले तो उससे अच्चा कुछ भी नहीं. आज भी ऐसा हुआ कि हमें नॉएडा से आने में देर हो गयी और रत का भोजन भी करना था तो खुशबू ने खाना बनाया और परोसने तक बारह बज गए. अब खाने के बाद भी थोडा बैठना जरूरी था. अब हमने संस्कार चैनल लगा दिया और उसपे श्री केसरी नंदन सत्संग समिति के पंडित जी सुन्दरकाण्ड पाठ कर रहे थे.....ये बहुत ही आनंददायी था. हुम्सुनाने लगे और काफी देर तक सुनते रहते. खुशबू को भी यह काफी पसंद आया. इनजा सुन्दरकाण्ड पाठ बहुत ही लय में और बहुत ही अच्छे से उच्चारित है जो बहुत ही उत्तम है.

इस बीच मुझे एक साईट मिली जिस पैर बहुत सरे भजन और आरती हैं....साथ में सुन्दरकाण्ड का भी mp3 है.

http://www.hanumanchalisa.org/mp3/

एक दूसरा mp3 का भी link यहाँ पैर ही सुना जाकता है...

Shree Hanuman Amritvani-01-Sunder Kand .mp3
Found at bee mp3 search engine
उम्मीद है कि आप सब भी इसका लाभ उठा पायें.

जय श्री राम !
राम राम जय जय राम सिया राम !

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Sunday, November 15, 2009

Neta ji Kahin....

यह मनोहर श्याम जोशी जी की एक अच्छी पुस्तक है. व्यंगात्मक शैली मैं लिखी गयी इस पुस्तक के नायक नेता जी का चरित्र तो प्रचंड है :-) एक छुटभैये नेता होते हुए भी उनका रुतबा और उस पर से आत्म विश्वास ... कुछ भी कर गु़जरने का बहुत ही अच्चे तरीके से उभरा हुआ है. कई जगह पर तो उनके कथन इतने अच्छे हैं की हंसते हंसते आप के पेट में बल पड़ जाएँ और कई जगह पर ये कटाक्ष डेमोक्रेसी में दुर्व्यवस्था को बड़े अच्छे से उभारते हैं.एक उदहारण के तौर पर....

"गाँव दिहात में कहितें हैं की जिसकी जीभ चलती हय, उसके नऊ बिगहा खेत में हल चलिता हय.
वियापी हइये वोही जिसके एकही अंग को कष्ट देना पड़ता हय - जीभ को !"

और भी ऐसे कई वाकये हैं जो बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत किये गए हैं.

इस पुस्तक को हलके फुल्के पल में पढ़ना बहुत ही आनंददायक होगा.


एक परेशानी थोडा सा होती है जब अंग्रेजी के शब्दों को जोशी जी ने हिन्दी में लिखा है....वो थोडा क्लिष्ठ हो जाते हैं....और कुछ जगहों पर जिस तरह से उनका संधि विच्छेद कर के लिखा हुआ है...पढ़ने में थोडा असुविधा होती है...वैसे तो उस चीज़ को किस तरह से बोला जाता है....उसीको प्रस्तुत करने की कोशिश अच्छी है.

http://en.wikipedia.org/wiki/Manohar_Shyam_Joshi

http://en.girgit.chitthajagat.in/rachanakar.blogspot.com/2008/06/blog-post_20.html