A fabulous read after quite some time by Ken Follet....It's about a german spy Die Nadel who if existed, was very near to let Germany win the World War II. He did a great job...collecting proofs of the biggest English bluff army/airforce base in a particular region of Britain, he made all his effort to let it be handed to Feuhror. He almost made it...but lost the last battle and loved a british women who is good to her till the moment, she didn't know if he is a German.
Overall a great novel to read....
More ....
http://en.wikipedia.org/wiki/Eye_of_the_Needle
Friday, July 16, 2010
Thursday, July 1, 2010
Lapataganj.....
अभी सब टीवी पर लापतागंज सीरियल, जो १०:०० बजे शाम को शुरू होता है...एक बहुत ही ताज़गी भरा प्रोग्राम है. समाज कि मध्य वर्ग के जीवन में खुशियाँ छोटी छोटी चीज़ों से किस तरह से पाई जा सकती हैं...इसका एक बहुत ही अच्चा चित्रण इस सीरियल में करा गया है.
बिजी पांडेय और गुड्डू कि जोड़ी तो बहुत ही अच्छा और मनोरंजक उदाहरण है मध्य वर्गीय समाज के युवकों को चित्रित करता हुआ जो शायद थोड़े व्यस्त हैं अपनी सपनों कि दुनिया में. उनके सपने बहुत बड़े नहीं हैं, बस कुछ चंद हज़ार रुपये और "सुरीली" कि उनके जीवन में उपस्थिति ही उनको भूँकने से लेकर एक अच्छा इन्सान बनाने को प्रेरित करती है.
शेष .....
बिजी पांडेय और गुड्डू कि जोड़ी तो बहुत ही अच्छा और मनोरंजक उदाहरण है मध्य वर्गीय समाज के युवकों को चित्रित करता हुआ जो शायद थोड़े व्यस्त हैं अपनी सपनों कि दुनिया में. उनके सपने बहुत बड़े नहीं हैं, बस कुछ चंद हज़ार रुपये और "सुरीली" कि उनके जीवन में उपस्थिति ही उनको भूँकने से लेकर एक अच्छा इन्सान बनाने को प्रेरित करती है.
शेष .....
Saturday, January 30, 2010
सुन्दरकाण्ड का पाठ वैसे तो बहुत ही सुखदाई होता है परन्तु अगर यह एक अच्छे लय में सुनाने को मिले तो उससे अच्चा कुछ भी नहीं. आज भी ऐसा हुआ कि हमें नॉएडा से आने में देर हो गयी और रत का भोजन भी करना था तो खुशबू ने खाना बनाया और परोसने तक बारह बज गए. अब खाने के बाद भी थोडा बैठना जरूरी था. अब हमने संस्कार चैनल लगा दिया और उसपे श्री केसरी नंदन सत्संग समिति के पंडित जी सुन्दरकाण्ड पाठ कर रहे थे.....ये बहुत ही आनंददायी था. हुम्सुनाने लगे और काफी देर तक सुनते रहते. खुशबू को भी यह काफी पसंद आया. इनजा सुन्दरकाण्ड पाठ बहुत ही लय में और बहुत ही अच्छे से उच्चारित है जो बहुत ही उत्तम है.
इस बीच मुझे एक साईट मिली जिस पैर बहुत सरे भजन और आरती हैं....साथ में सुन्दरकाण्ड का भी mp3 है.
http://www.hanumanchalisa.org/mp3/
एक दूसरा mp3 का भी link यहाँ पैर ही सुना जाकता है...
उम्मीद है कि आप सब भी इसका लाभ उठा पायें.
जय श्री राम !
राम राम जय जय राम सिया राम !
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इस बीच मुझे एक साईट मिली जिस पैर बहुत सरे भजन और आरती हैं....साथ में सुन्दरकाण्ड का भी mp3 है.
http://www.hanumanchalisa.org/mp3/
एक दूसरा mp3 का भी link यहाँ पैर ही सुना जाकता है...
Shree Hanuman Amritvani-01-Sunder Kand .mp3 | ||
Found at bee mp3 search engine |
जय श्री राम !
राम राम जय जय राम सिया राम !
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Sunday, November 15, 2009
Neta ji Kahin....
यह मनोहर श्याम जोशी जी की एक अच्छी पुस्तक है. व्यंगात्मक शैली मैं लिखी गयी इस पुस्तक के नायक नेता जी का चरित्र तो प्रचंड है :-) एक छुटभैये नेता होते हुए भी उनका रुतबा और उस पर से आत्म विश्वास ... कुछ भी कर गु़जरने का बहुत ही अच्चे तरीके से उभरा हुआ है. कई जगह पर तो उनके कथन इतने अच्छे हैं की हंसते हंसते आप के पेट में बल पड़ जाएँ और कई जगह पर ये कटाक्ष डेमोक्रेसी में दुर्व्यवस्था को बड़े अच्छे से उभारते हैं.एक उदहारण के तौर पर....
"गाँव दिहात में कहितें हैं की जिसकी जीभ चलती हय, उसके नऊ बिगहा खेत में हल चलिता हय.
वियापी हइये वोही जिसके एकही अंग को कष्ट देना पड़ता हय - जीभ को !"
और भी ऐसे कई वाकये हैं जो बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत किये गए हैं.
इस पुस्तक को हलके फुल्के पल में पढ़ना बहुत ही आनंददायक होगा.
एक परेशानी थोडा सा होती है जब अंग्रेजी के शब्दों को जोशी जी ने हिन्दी में लिखा है....वो थोडा क्लिष्ठ हो जाते हैं....और कुछ जगहों पर जिस तरह से उनका संधि विच्छेद कर के लिखा हुआ है...पढ़ने में थोडा असुविधा होती है...वैसे तो उस चीज़ को किस तरह से बोला जाता है....उसीको प्रस्तुत करने की कोशिश अच्छी है.
http://en.wikipedia.org/wiki/Manohar_Shyam_Joshi
http://en.girgit.chitthajagat.in/rachanakar.blogspot.com/2008/06/blog-post_20.html
"गाँव दिहात में कहितें हैं की जिसकी जीभ चलती हय, उसके नऊ बिगहा खेत में हल चलिता हय.
वियापी हइये वोही जिसके एकही अंग को कष्ट देना पड़ता हय - जीभ को !"
और भी ऐसे कई वाकये हैं जो बहुत ही अच्छे से प्रस्तुत किये गए हैं.
इस पुस्तक को हलके फुल्के पल में पढ़ना बहुत ही आनंददायक होगा.
एक परेशानी थोडा सा होती है जब अंग्रेजी के शब्दों को जोशी जी ने हिन्दी में लिखा है....वो थोडा क्लिष्ठ हो जाते हैं....और कुछ जगहों पर जिस तरह से उनका संधि विच्छेद कर के लिखा हुआ है...पढ़ने में थोडा असुविधा होती है...वैसे तो उस चीज़ को किस तरह से बोला जाता है....उसीको प्रस्तुत करने की कोशिश अच्छी है.
http://en.wikipedia.org/wiki/Manohar_Shyam_Joshi
http://en.girgit.chitthajagat.in/rachanakar.blogspot.com/2008/06/blog-post_20.html
Thursday, October 29, 2009
RashmiRathi - by Dinkar
रश्मिरथी, रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित एक ऐसा काव्य जो दिल दिमाग को छु जाये. अभी पिछले ही हफ्ते हम बनारस से आ रहे थे तो मैंने यह पुस्तक ली हुई थी और पढ़ रहे थे. थोडी देर बाद हमें थोडा झपकी सी आ गयी तो एक महानुभाव जो कि बगल में बैठे थे, उन्होंने ये पुस्तक ले ली. दिनकर जी द्वारा रचित यह एक ऐसा काव्य है, जो किसी को भी बांध ले...और यही हुआ. ये साहब ऐसे चिपके कि इन्होने इस बात का भी ख्याल नहीं किया कि मैं इस पुस्तक को पढ़ रहा था. यद्यपि कि यह पुस्तक बहुत छोटी है, लेकिन जब रस ले कर इसे पढ़ा जाये तो थोडा समय लगाना तो स्वाभाविक है.
कुछ अंश मैं यहाँ भी प्रस्तुत करता हूँ....उसके बाद बताऊंगा कि इन महानुभाव ने मुझे पुस्तक वापस कर दी कि नहीं....:-)
यह काव्य मुख्यतः कर्ण के चरित्र कि ऊँचाइयों को चित्रित करता है. कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था और इसका कारन उसका जन्मतः क्षत्रिय परन्तु लालन पालन सूतपुत्र कि तरह से होने के कारन था. कर्ण एक समय अर्जुन जैसे धनुर्धर के लिए भी भय सिद्ध होता है और गुरु द्रोणाचार्य इस बात से भयभीत रहते हैं...कि उनका अर्जुन को सबसे बड़ा धनुर्धर बनाने का प्रयत्न गलत हो जाता. भगवन कृष्ण भी एक आवसर पर कर्ण को दुर्योधन को छोड़ने को कहते हैं. कर्ण का व्रत अब तो दुर्योधन के साथ रहने का हो गया होता है....अतः वो भगवन कृष्ण को विनयपूर्वक मन कर देता है. यह प्रकरण अत्यंत ही संवेदना से भरा हुआ है. कर्ण के चरित्र का दूसरा पहलू दानवीर का है और इन्द्र को बहुत क्षुद्रता का अहसास होता है....जब कर्ण उनको कंवाच और कुंडल भी दान में दे देता है....मांगने पर. (इन्द्र का एक दूसरा बहुत ही ख़राब रूप दीक्षा - नरेन्द्र कोहली कि पुस्तक में भी था). एक दूसरे स्थान पर कुंती भी दान में अक्षय मांग लेती हैं...कर्ण कहता है....कि अगर अर्जुन कर्ण पर विजयी होता है तो ५ के ५ रहेंगे...अन्यथा अगर कर्ण अर्जुन पर विजय पायेगा तो उस दिन एक इतिहास रचेगा और पांडवों के पास आ जायेगा. इस तरह से कुंतइ ५ कि माता बनी रहेगी. कुछ और भी बहुत ही अच्छे उद्धरण हैं जो कि पढ़ने में बहुत आनंद देते हैं.
शुरू में ही युध(war) के बारे में कुछ पंक्तियाँ -
रण केवल इस लिए कि राजे और सुखी हों मानी हों,
और प्रजाएँ मिलें उन्हें वो और अधिक अभिमानी हों !
रण केवल इस लिए कि वो कल्पित अभाव से छूट सकें,
बढ़ें राज्य कि सीमा और वो अधिक जनों को लूट सकें ||
क्षुद्र पात्र हो मग्न कूप से जितना जल लेता है
उससे अधिक वारी सागर भी उसे नहीं देता है |
रश्मिरथी - On Wikipedia
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कुछ अंश मैं यहाँ भी प्रस्तुत करता हूँ....उसके बाद बताऊंगा कि इन महानुभाव ने मुझे पुस्तक वापस कर दी कि नहीं....:-)
यह काव्य मुख्यतः कर्ण के चरित्र कि ऊँचाइयों को चित्रित करता है. कर्ण का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था और इसका कारन उसका जन्मतः क्षत्रिय परन्तु लालन पालन सूतपुत्र कि तरह से होने के कारन था. कर्ण एक समय अर्जुन जैसे धनुर्धर के लिए भी भय सिद्ध होता है और गुरु द्रोणाचार्य इस बात से भयभीत रहते हैं...कि उनका अर्जुन को सबसे बड़ा धनुर्धर बनाने का प्रयत्न गलत हो जाता. भगवन कृष्ण भी एक आवसर पर कर्ण को दुर्योधन को छोड़ने को कहते हैं. कर्ण का व्रत अब तो दुर्योधन के साथ रहने का हो गया होता है....अतः वो भगवन कृष्ण को विनयपूर्वक मन कर देता है. यह प्रकरण अत्यंत ही संवेदना से भरा हुआ है. कर्ण के चरित्र का दूसरा पहलू दानवीर का है और इन्द्र को बहुत क्षुद्रता का अहसास होता है....जब कर्ण उनको कंवाच और कुंडल भी दान में दे देता है....मांगने पर. (इन्द्र का एक दूसरा बहुत ही ख़राब रूप दीक्षा - नरेन्द्र कोहली कि पुस्तक में भी था). एक दूसरे स्थान पर कुंती भी दान में अक्षय मांग लेती हैं...कर्ण कहता है....कि अगर अर्जुन कर्ण पर विजयी होता है तो ५ के ५ रहेंगे...अन्यथा अगर कर्ण अर्जुन पर विजय पायेगा तो उस दिन एक इतिहास रचेगा और पांडवों के पास आ जायेगा. इस तरह से कुंतइ ५ कि माता बनी रहेगी. कुछ और भी बहुत ही अच्छे उद्धरण हैं जो कि पढ़ने में बहुत आनंद देते हैं.
शुरू में ही युध(war) के बारे में कुछ पंक्तियाँ -
ये पंक्तियाँ आज भी उतनी ही सच प्रस्तुत करतीं हैं जितना महाभारत के समय पर.
कुछ और पंक्तियाँ जो मुझे कार्य स्थल पर, या दैनिक जीवन में कहीं भी स्वाभाविक ही दिखतीं हैं....
ऐसी ही अनेक पंक्तियाँ हैं जो मन को बहुत भातीं हैं.
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Tuesday, October 27, 2009
Narendra Kohli - Deeksha
अभी हमें नरेन्द्र कोहली के साहित्य को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ. इन्होने रामायण के मानवीकरण भावः को कुछ पुस्तकों में बहुत ही उत्तम ढंग से प्रस्तुत पिया है. पहला भाग, जो कि दीक्षा के नाम से प्रकाशित है, मैंने अभी छुट्टियों में पढ़ा. यह मूलतः राम के युवावस्था कि कहानी है...जब राक्षसों से ट्रस्ट हो कर गुरु विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को अयोध्या से ले आये और उनको अस्त्र-शस्त्र कि शिक्षा दी.
इस प्रसंग में नरेन्द्र जी जब दशरथ के व्यक्तित्व के बारे में लिखते हैं...तो वह थोडा कलयुग से प्रभावित मानवीकरण लगता है. दशरथ का चरित्र रामायण में ऊँचा मन गया है...लेकिन इस पुस्तक में यह इतना अछछा नहीं दर्शाया गया है. राम और लक्ष्मन का चरित्र बहुत ही बारीकी से प्रस्तुत किया गया है....जो कि वस्तुतः सराहनीय है.
यह पुस्तक बहुत ही रोचक हो जाती है...जब गौतम-अहिल्या प्रसंग आता है. इतना जीवंत छत्रं मैंने अपने याद में किसी भी उपन्याश में नहीं पढ़ा था. इन्द्र के द्वारा अहल्या का शील हरण और उसके बाद केवल एक आक्षेप से अहिल्या के जीवन को नष्ट कर देने का सफल प्रयास बहुत ही दारुण है और आपको आज के युग में भी नारी कि दुर्दशा के बारे में बहुत कुछ बता जाता है. पश्चात् इसके, गौतम का असमंजस और एक निर्णय पर पहुंचना बहुत ही रोचक है. श्राप के असर के बारे में लेखक के विचार बहुत श्रेष्ठ हैं .. मसलन कि ऋषि का श्राप तभी असरदार होगा जब रजा उनके साथ हो औत वोही निश्चित करें कि श्राप का पालन हो. गौतम इन्द्र को श्राप देते हैं कि अब किसी भी यज्ञ-अनुष्टान में इस्द्र कि पूजा नहीं होगी और जनक इस बात को फलीभूत करने का वचन देतें हैं.
एक शापित जीवन व्यतीत कर रही अहिल्या का उधर भगवन श्री राम करते हैं....उन्हें पूरा सम्मान देकर...श्री राम को एक पुरुष रूप में प्रस्तुत किया गया है...जो निर्भीक हैं, चरित्र वाले हैं और नारी को अछिछी तरह से समझते हैं.
यह एक ऐसी पुस्तक है जो हर किसी को एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए.
नरेन्द्र कोहली - Wikipedia
इस प्रसंग में नरेन्द्र जी जब दशरथ के व्यक्तित्व के बारे में लिखते हैं...तो वह थोडा कलयुग से प्रभावित मानवीकरण लगता है. दशरथ का चरित्र रामायण में ऊँचा मन गया है...लेकिन इस पुस्तक में यह इतना अछछा नहीं दर्शाया गया है. राम और लक्ष्मन का चरित्र बहुत ही बारीकी से प्रस्तुत किया गया है....जो कि वस्तुतः सराहनीय है.
यह पुस्तक बहुत ही रोचक हो जाती है...जब गौतम-अहिल्या प्रसंग आता है. इतना जीवंत छत्रं मैंने अपने याद में किसी भी उपन्याश में नहीं पढ़ा था. इन्द्र के द्वारा अहल्या का शील हरण और उसके बाद केवल एक आक्षेप से अहिल्या के जीवन को नष्ट कर देने का सफल प्रयास बहुत ही दारुण है और आपको आज के युग में भी नारी कि दुर्दशा के बारे में बहुत कुछ बता जाता है. पश्चात् इसके, गौतम का असमंजस और एक निर्णय पर पहुंचना बहुत ही रोचक है. श्राप के असर के बारे में लेखक के विचार बहुत श्रेष्ठ हैं .. मसलन कि ऋषि का श्राप तभी असरदार होगा जब रजा उनके साथ हो औत वोही निश्चित करें कि श्राप का पालन हो. गौतम इन्द्र को श्राप देते हैं कि अब किसी भी यज्ञ-अनुष्टान में इस्द्र कि पूजा नहीं होगी और जनक इस बात को फलीभूत करने का वचन देतें हैं.
एक शापित जीवन व्यतीत कर रही अहिल्या का उधर भगवन श्री राम करते हैं....उन्हें पूरा सम्मान देकर...श्री राम को एक पुरुष रूप में प्रस्तुत किया गया है...जो निर्भीक हैं, चरित्र वाले हैं और नारी को अछिछी तरह से समझते हैं.
यह एक ऐसी पुस्तक है जो हर किसी को एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए.
नरेन्द्र कोहली - Wikipedia
Wednesday, October 7, 2009
Shekhar - Ek Jeevani....Agyeya
Sachidanand Hiranan Vatsyayan "Agyeya" यह नाम हिंदी साहित्य का बहुत सुप्रसिद्ध नाम है | बचपन में उनकी कुछ कवितायेँ पढ़ी थी...जो प्रायः शिक्षक लोगों को भी नहीं समझ में आती थीं तो हमारे लिए तो मुश्किलें थोडी ज्यादा ही होती थीं. वह संघर्ष अच्चा होता था...जब ऐसे किसी साहित्यकार के दर्शन को परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ लेते थे |
कुछ वर्ष पश्चात मुझे एक अवसर मिला जब मैंने अज्ञेय जी की "शेखर - एक जीवनी" पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ | इसके २ खंड थे और मैंने पहलखंड पढ़ना शुरू किया था | यस एक बच्चे की कहानी थी जो कई सरे भाई बहनों में उपेक्षित था | इस बच्चे का बाल्य काल और इसकी सोच को बहुत ही उत्तम तरीके से प्रस्तुत किया गया था | शेखर का शुरूआती जीवन और भाई बहनों में दब गया था और एक उपेक्षित बाल्य काल में शेखर की अपनी अनुभूतिया कुछ इस तरह से लिखा गया है ... कि पढ़ते समय आप मुग्ध हो जायेंगे | शेखर कि यह सिद्ध करने कि जिद कि मैं भी हूँ और उसके लिए एक अपने आपको कुछ भी करने के लिए प्रस्तुत रहना, बहुत अच्छी तरीके से लिखा गया है | एक वाकया जिसमें कि शेखर को यह लगता है कि वह किसी बीमारी से ग्रस्त है...और एन्स्य्क्लोपेडिया में इस बीमारी को खोजना .... शेखर एक एक करके सारी बिमारियों का लक्षण देख रहा है और उसको काफी कुछ उसके अपने बीमारी के लक्षणों से मिलाता जुलता लगता है | जब वो अंतिम बीमारी तक पहुंचता है तो इस बीमारी में व्यक्ति को ये लगता है कि वो और सारी बिमारियों, जो उसने अभी तक पढीं, उन सबसे पीड़ित है | इस तरह के और कई सरे वाकये हैं जो इस साहित्य कृति को उत्कृष्ट बनाते हैं |
आज कि तारीख में यह साहित्य मिलाना शायद मुश्किल हो....लेकिन अगर मिले तो अवश्य पढें |
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कुछ वर्ष पश्चात मुझे एक अवसर मिला जब मैंने अज्ञेय जी की "शेखर - एक जीवनी" पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ | इसके २ खंड थे और मैंने पहलखंड पढ़ना शुरू किया था | यस एक बच्चे की कहानी थी जो कई सरे भाई बहनों में उपेक्षित था | इस बच्चे का बाल्य काल और इसकी सोच को बहुत ही उत्तम तरीके से प्रस्तुत किया गया था | शेखर का शुरूआती जीवन और भाई बहनों में दब गया था और एक उपेक्षित बाल्य काल में शेखर की अपनी अनुभूतिया कुछ इस तरह से लिखा गया है ... कि पढ़ते समय आप मुग्ध हो जायेंगे | शेखर कि यह सिद्ध करने कि जिद कि मैं भी हूँ और उसके लिए एक अपने आपको कुछ भी करने के लिए प्रस्तुत रहना, बहुत अच्छी तरीके से लिखा गया है | एक वाकया जिसमें कि शेखर को यह लगता है कि वह किसी बीमारी से ग्रस्त है...और एन्स्य्क्लोपेडिया में इस बीमारी को खोजना .... शेखर एक एक करके सारी बिमारियों का लक्षण देख रहा है और उसको काफी कुछ उसके अपने बीमारी के लक्षणों से मिलाता जुलता लगता है | जब वो अंतिम बीमारी तक पहुंचता है तो इस बीमारी में व्यक्ति को ये लगता है कि वो और सारी बिमारियों, जो उसने अभी तक पढीं, उन सबसे पीड़ित है | इस तरह के और कई सरे वाकये हैं जो इस साहित्य कृति को उत्कृष्ट बनाते हैं |
आज कि तारीख में यह साहित्य मिलाना शायद मुश्किल हो....लेकिन अगर मिले तो अवश्य पढें |
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