मैं अभी राग दरबारी पढ़ रहा था..जो की श्री लाल शुक्ल के द्वारा लिखित है| यह उपन्यास मुझे विवेक उपाध्याय से प्राप्त हुई..जो उनके एक सम्बन्धी ने उनको भेंट दी थी...चूँकि मेरा इंटेरेस्ट है तो मैंने उनसे यह पुस्तक ले कर पढ़ने के बारे में सोचा | आज जब यह उपन्यास ख़तम हुआ तो फिर मैंने सोचा की मुझे इसके बारे में कुछ लिखना चाहिए.
वैसे देखा जाये तो यह उपन्यास थोडा पुराने परिप्रेक्ष्य में लिखी गई है और वैसे भी श्री लाल शुक्ल जी ने इसे १९७० के आस पास लिखा है | पुस्तक शुरू होती है...एक पात्र रंगनाथ से जो अपने मामा जी के यहाँ शिवपाल गंज जा रहे हैं....इनके मामा जी वहां के मठाधीश हैं और जिस तरह से उन्होंने गाँव में समाज सेवा के नाम पर सब कुछ अपनी मुठ्ठी में बंद कर रखा है, उसका व्याख्यान लेखक ने बड़े ही अच्चे ढंग से प्रस्तुत किया है. बीच बीच में लेखक ने जो व्यंग प्रस्तुत किये हैं...वोह तो अति उत्तम हैं. कुल मिला के मैं इसके बारे में कहूँगा की प्रत्येक किसी को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए |
अभी मैं आगे श्री हरि शंकर परसाई जी के व्यंग के बारे में लिखूंगा...उम्मीद है कुछ पढ़ने वाले लोग उससे कुछ लाभ उठा पाएंगे और उत्साह वर्धन करेंगे ||
मैनें रागदरबारी पढ़ी है । लिखते रहे । स्वागत है ।
ReplyDeleteBAHUT BADHIYA ............SWAGAT HAI
ReplyDeleteस्वागत है।
ReplyDeleteराग दरबारी वाकई बहुत स्तरीय और विस्तृत परिपेक्ष्य की पत्रिका है मैंने भी कई बार रागदरबारी को पढ़ा है। कभी मानसिक रूप से परेशान होती हूं तो रागदरबारी और परती परिकथा पढ़कर मुझे बहुत शुकून मिलता है।
ReplyDeleteआपने हरिशंकर परसाई जी का नाम गलत लिखा है।
धन्यवाद,
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं......
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूं..
www.samwaadghar.blogspot.com
Dhanyabad...Narad, Chandan, Hitendra, Jayram, Paramjeet, Sangeeta, Sanjay....aap sab ke utsah vardhan ke liye !
ReplyDeleteDhanyabad Pritima ji, galati ki taraf ingit karne ke liye !