Saturday, April 28, 2018

Donon hi bhagwan hain....












                                                                                        


बहुत दिनों की बात है ...वापस आ रहा हूँ कुछ प्रस्तुत करने !




                                                                                       


दोनों ही भगवन हैं..



श्री राम यथार्थ से थोड़े दूर लगते हैं ! नहीं, मैं ये नहीं कह रहा हूँ की श्री राम यथार्थ  नहीं हैं किन्तु श्री राम कलयुग देखते हुए वास्तविक नहीं लग सकते हैं ! प्रभु राम का पूरा जीवन ही आदर्श के चरम पर दिखता है !




जीवन की शुरुआत गुरुकुल में, फिर घर पहुंचते ही पुनः गुरु वशिष्ठ और ब्राह्मणों की रक्षा के लिए पुनः कठिन जीवन के लिए प्रस्तुत होना ! ये सब तब जब उन्हें गृह वापस आने पर रुकने के पुरे अवसर थे ! ये कठिन था और अभी तो कलयुग के परिप्रेक्ष्य में असंभव लगता है किन्तु प्रभु राम के लिए ये निश्चित करना ज्यादा कठिन नहीं था ! उसके बाद विवाह हुआ, गुरु की इच्छा से और क्षत्रिय धर्म के लिए उन्होंने  भाग लिया और जिस भांति उन्होंने परशुराम जी के उग्र व्यव्हार को शांति पूर्वक सुना और फिर उन्हें प्रणाम करते हुए उस रूप का दर्शन दिया, अनुभूति कराई, वो व्यवहार ही उन्हें प्रभु श्री राम बनाता है ! विवाह उपरांत घर पहुंचे और नारी-कलह ने पुनः उन्हें विस्थापित कर दिया !


श्री पिता के वचन के हेतु उन्होंने सहर्ष वन जाना स्वीकार किया, जब पिता स्वयं ही अपने वचन के लिए ग्लानि मन रहे थे ! माँ कैकेयी के बारे में उन्होंने कुछ भी बुरा नहीं सोचा और वन जाने के लिए प्रस्तुत हो गए ! धन्य हैं सीता जी जिन्होंने उनके साथ वन जाना स्वीकार किया और बिना कुछ विचार किये अपने को प्रस्तुत कर दिया. ! वो लक्ष्मण जो राम के साथ हमेशा रहे, उन्हें अवसर मिला होता की वो राजा बनें किन्तु उन्हें  वो तुच्छ लगा ! ये आदर्श प्रभु श्री राम के स्थापित किये आदर्श  से मेल खाता है !


और फिर वो श्री भरत जो श्री राम के खड़ाऊँ ले कर और तपस्वी रूप में राज्य का कार्य-भर सम्हालते हैं ! ये श्री राम के आदर्श ही थे जो श्री राम को इतने ऊँचे स्तर पर ले जाते हैं जो अविश्वसनीय हैं...








फिर श्री कृष्णा हैं....


युग बदला और छल प्रपंच जीवन में घुल मिल गया ! कंस हुए जिन्होंने अपने भांजों के जन्म पर ही त्रास दिया ! भगवन फिर आये श्री कृष्णा के रूप में ! किन्तु इस छल की दुनिया में अब सब कुछ बदल गया था ! छल के इस प्रबंध में छल का काम बढ़ा !


शेष। ..


कुल मिला कर कर्म प्रधान है , ये सीख तो मिलती ही है !

































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