Thursday, October 30, 2014

rim jhim gire sawan....

रिम  झिम गिरे सावन, सुलग सुलग जाये मन
भींगे आज इस मौसम में, लगी कैसी ये अगन !!

लता मंगेशकर की आवाज़ में ये ख़ूबसूरत गीत आज की दिन भर की थकन पूरी नहीं तो थोड़ी थकन तो जरूर दूर करता है. सोच रहा हूँ की आज कल के गाने और पुराने गानों  में कितना  फर्क है. और फिर ये भी  है की आज की जनरेशन कितना कुछ मिस करती होगी. कहीं  पढ़ा था की अगर क्लासिकल मुस्िक सुना जाये तो स्ट्रेस लेवल वैसे ही कंट्रोल रहता है और आज कल के गाने तो क्लासिकल मुस्िक से कोसों दूर रहते हैं.

आने वाली जनरेशन या तो  इतनी कूल होगी की उनको जरूरत ही नहीं होगी किसी भी स्ट्रेस बस्टर की। …उमॆद करता हूँ ऐसा ही हो.  वैसे तो देख रहा हूँ की कुछ नै पीढ़ी के लोग  सुन रहे हैन…और एन्जॉय भी कर रहे  हैं.

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मुझे फिर वोही याद आने लगे हैं, जिन्हें भूलने में ज़माने हैं !

सुना है हमें वो भूलने लगे हैं, तो क्या क्या हम उन्हें याद आने लगे हैं !!

कुछ  और लाइनें याद आती हैं जो गुजरे हुए ज़माने में ले जाती हैं. हरिहरन की ये ग़ज़ल पुराने ज़माने की याद हैं।  तब, जब की कैसेटस चला करते  थे और वॉकमेन हाथों में शोभा बढ़ता था.





































































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